Sunday, 24 July 2016

जीवन


जीवन 


भरत मुनि के रस-सिद्धांत अथवा मम्मट द्वारा की गयी रसों की व्यवस्था-व्याख्या को हम जीवन के लिए बोझिल मानकर भले ही नकार दें, पर रस को जीवन से निष्कासित करके जीवन को पूरी तरह समझा नहीं जा सकता. रस और जीवन के सम्बंधों को समझने के लिए यह कतई आवश्यक नहीं है कि हम रसों की सैद्धांतिक व्याख्या से परिचित हों. रस वस्तुतः अनुभव करने की चीज़ है. 

Saturday, 29 September 2012

29 Sept'2012 ----9th पुण्य तिथि

 
 
 
स्व.श्री अवधेश कुमार तिवारी
आज मेरे स्वर्गीय पूज्य पिता जी की पुण्य तिथि है.आज ही के दिन,9 वर्ष पूर्व 2004 में सायंकाल उनका गोरखपुर में निधन हो गया था.पुणे से सुबह ही पहुंचा था.दिन भर उनके साथ रहने का योग मिला था.वह दिन मैं प्रतिदिन याद रखना चाहता हूँ , लेकिन ऐषा संभव नहीं हो पता है . पिताजी एक कविता प्रति क्षण जीवन का रहस्य
समझाने की चेष्टा करती रहती है,
सपना क्या है?
देख रहा हूँ, सपना क्या है?
सपना है ,तो अपना क्या है ?
घिरा हुआ ,अविरल घेरे में ,
कैसे जानूँ , क्या तेरे में ?
बंधन चक्कर, जब अजेय है,
निस वासर, ये तपना क्या है?
देख रहा हूँ, सपना क्या है.
सपना है, तो अपना क्या है?
राजा था ,क्यों रंक हो गया ?
ज्ञानी था, तो कहाँ खो गया ?
पता नहीं ,जब कोई किसी का,
नाम लिए ,और जपना क्या है?
देख रहा हूँ, सपना क्या है........
पाना खोना, खोना पाना,
क्या कैसा है ,किसने जाना ?
सब कुछ है ,और कुछ भी नहीं है ,
ऐसे में ये, कल्पना क्या है ?
देख रहा हूँ ,सपना क्या है.........
क्या जानूँ , की सत्य कौन है ?
समझ न पाऊं, दिष्टि मौन है .
शांति चित्त बन जाये जिस छन ,
अति आनंद बरसना क्या है ?
देख रहा हूँ .............
यह भी मैं, और वह भी मैं हूँ,
जड़ भी मैं ,और चेतन मैं हूँ .
समय चक्र का, फंदा सारा,
सृस्ती जगत , भरमना क्या है ?
देख रहा हूँ ,सपना क्या है,
सपना है तो अपना क्या है ?


-अवधेश कुमार तिवारी
अश्रु पूरित नेत्रों से विनम्र श्रद्धांजलि............अब शब्द नहीं है..........................

Saturday, 8 September 2012

जिंदगी है प्यासी सुधा के लिए..

जिंदगी है प्यासी सुधा के लिए..
जिंदगी है प्यासी सुधा के लिए,
और तुम तो ज़हर ही पिलाते रहे.
गुन  गुनाते रहे हम मधुर राग में,
मेरे राहों में कांटे बिछाते रहे,
नहीं चाहता मैं ऊँची अटारी ,
सच्चाई  हमको है दुनिया में प्यारी.
मैं चाहता हूँ शीतल हवाएं ,
तुम तो धरा को तपाते रहे,
खिले हों सुमन, और नजदीक  हों ,
तो मेरी नज़र भी  ना मजबूर हो.
मैं पलकें  उठाये खड़ा रह गया ,
और तुम तो दीवारें उठाते रहे,
मेरे अधरों में देखो मधुर राग है,
मेरे पलकों में  दुनियां का  समभाव  है,
नहीं चाहता कोई बर्बाद हो पर,
तुम तो हकीक़त छुपाते रहे,
जब तेरी ये दुनिया मुनासिब नहीं,
ऐसी दुनिया का मैं भी हूँ आशिक नहीं.
मेरी तकदीर ऊँची सदा के लिए ,
और तुम बंधनों को लगाते रहे.

भक्त अपने भगवान से.

भक्त अपने भगवान से.
खेल खेलिला राउर नज़ारा रहल,
हम नाचीं ला राउर इशारा रहल.
चाहे प्यारा रहल या किनारा रहल,
जे बा आईल राउरे सहारा रहल.
चाहे निमन भईल चाहे बाउर भईल,
सम्मान अपमान राउर भईल.
हम नाचिला राउर इसारा रहल,
चाहे भूसी भईल चाहे चाउर भईल.
रउरा भेजले बानी हम आईल बानी,
भोर डल लीं हमहूँ भुलाईल बानी.
जब पवली ना राउर सुरतिया कभी.
राउरे माया में अजहूँ लुभाईल बानी.

अब भगवान पैदा कर...


अब भगवान पैदा कर...

मेरा कहना  अगर मानो तो,
एक इन्सान पैदा कर.
सम्हाले डोलती नैया,
बना बलवान पैदा कर.
तुम्हारे ही इसारे पर,
सभी ये दृश्य आते हैं.
हमारी प्रार्थना तुमसे ,
अब सम्मान पैदा कर.
हजारों कुर्सियां रोतीं की ,
सहभागी नहीं भेजा.
ये हमने देख ली दुनिया,
कोई अनजान पैदा कर.
पढ़ा है हमने दृश्यों को,
कोई दुर्भाग्य लिखा है.
डूबाने को ही भेजे हो,
 यहाँ नादान पैदा कर,
मिलीं हैं लाख तस्बीरें,
लगे नफरत के हैं रिश्ते.
अब एक तस्बीर में भरकर ,
श्रद्धा ,इमान पैदा कर.
अगर बर्बाद करने के ,
तमाशे हो रहे तेरे,
हमारो दर्शनों के वास्ते,
अब भगवान पैदा कर.

बाप और बेटे का रिश्ता - पिता परमेश्वर

बाप और बेटे का रिश्ता पिता परमेश्वर
(पिताजी की डायरी से )
अग्निहोत्री    से  नौ   ग्रहों की उत्पत्ति हुई, एस प्रकार सभी  उसके  बेटे हुए. स्वयं वह    हिरान्यगर्भा    बना तो पंचमुखी हनुमान , ७ महात्मा, माया, भक्ति,एकबालक, वामांगी परमात्मा ,ब्रह्मा ,विष्णु ,  महेश  तथा अन्य सभी आत्माओं की उत्पत्ति किया .एस प्रकार हिरान्यगर्भा के सभी बेटे हुए.हिरान्यगर्भा स्वयं विष्णु बना.
पृथ्वी पर वामांगी परमात्मा आया बाबा आदम के रूप में और दो लड़कों की उत्पत्ति की-एक सज्जन और दूसरा दुर्जन .  उन दोनों ने संसार बसाया इस प्रकार बाबा आदम के ही सभी हैं .वही हर आदमी का पिता परमेश्वर है.वही बाबा आदम राजा नहुष ,राजा मोरंग्ध्वाज ,हरिश्चंद्र ,वामदेव महादेव,प्रेत ,राजकुंवर अमरसिंह,शंखपति,महंथ विश्वनाथ और कलंकी के रूप में आया तथा पुनः कलंकी अवतार के बाद फिर वही अग्निहोत्री बनेगा और विष्णु वामांगी परमात्मा बनेगा .
इस प्रकार सबका पिता कौन ?
यह तो आत्मा की बात थी परन्तु परमात्मा ने ही यह सब कुछ रचाया.आत्मा के साथ भी रहा अलग भी रहा अपने अंशों में भी रहा . आत्मा भी पूर्ण होती है,परमात्मा भी पूर्ण होता है . आत्मा भी अंशों में रहती है ,परमात्मा भी अंशों में रहता है.